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नाराशंसी / गजेन्द्र ठाकुर
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<Poem>
पसरि जाएत सगर विश्वमे गायत्री नाराशंसीक संग
से ओ
कविक
कविताकेँ
कविता के
छन्दक
रसमे
रस मे
राखि दैत छथि
बलि दऽ दैत छथि
कविक कविताक छन्दक रसक बलि
Sharda suman
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