|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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{{KKCatKavita}}<poem>ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,<br>किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?<br>किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,<br>भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?<br><br>
कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?<br>तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान ।<br><br>
फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !<br>ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!<br>सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,<br>दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है ।<br><br>
मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,<br>ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार ।<br><br>
वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है <br>जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है <br>देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है <br>माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है <br><br>
पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज <br>सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज? <br><br>
अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है? <br>तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है? <br>सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर में? <br>उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी बता किस घर में <br><br>
समर शेष है, यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा <br>और नहीं तो तुझ पर पापिनी! महावज्र टूटेगा <br><br>
समर शेष है, उस स्वराज को सत्य बनाना होगा <br>जिसका है ये न्यास उसे सत्वर पहुँचाना होगा <br>धारा के मग में अनेक जो पर्वत खडे हुए हैं <br>गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अडे हुए हैं <br><br>
कह दो उनसे झुके अगर तो जग मे यश पाएंगे <br>अड़े रहे अगर तो ऐरावत पत्तों से बह जाऐंगे <br><br>
समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो <br>शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो <br>पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे <br>समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे <br><br>
समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर <br>खण्ड-खण्ड हो गिरे विषमता की काली जंजीर <br><br>
समर शेष है, अभी मनुज भक्षी हुंकार रहे हैं <br>गांधी का पी रुधिर जवाहर पर फुंकार रहे हैं <br>समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है <br>वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है <br><br>
समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल <br>विचरें अभय देश में गाँधी और जवाहर लाल <br><br>
तिमिर पुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्काण्ड रचें ना <br>सावधान हो खडी देश भर में गाँधी की सेना <br>बलि देकर भी बलि! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे <br>मंदिर औ' मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे <br><br>
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध <br>जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध <br><br/poem>