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रूप के धूप / सत्यनारायण सिंह

1 byte removed, 11:05, 1 अक्टूबर 2013
<poem>रूप के धूप भी
बहुत तेज होखेला
 
प्रेम से घटा बनके घेरल जाला !
उर्वशी-रम्भा-मेनका के कहानी में
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