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बै / कृष्ण वृहस्पति
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04:17, 16 अक्टूबर 2013
|संग्रह=
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}<poem>बै घणा कारसाज है
म्हारै मूण्डा ऊपर छींका लगा’र
गुदारै अरज
Sharda suman
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