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निजर/ कन्हैया लाल सेठिया
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16:53, 16 अक्टूबर 2013
{{KKCatKavita}}
<Poem>
रुंख में
निकलसी
कठे कांटो'र कली
कुंपल'र फली
आ कुदरत जाने,
में माटी
म्हारी निजर
बीज पिछाने !
</Poem>
आशिष पुरोहित
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