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निजर/ कन्हैया लाल सेठिया

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<Poem>
 
रुंख में
 
निकलसी
 
कठे कांटो'र कली
 
कुंपल'र फली
 
आ कुदरत जाने,
 
में माटी
 
म्हारी निजर
 
बीज पिछाने !
 
</Poem>
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