|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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भलांई दै
लगोलग फूंकां
नाख उपराथळी धूड़
न कजरावै‘र बुझै
ए रतन दीया,
जे करणाईं चावै
अदीठ
आं री जोत
मींच ले दीठ
फेर खेल, खुल‘र
कोनी दिखै
तनैं थारी छयां
</Poem>