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दीठ रो फरक / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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बिरछ री डाळयां ओटै
आप काटो
टाबर रै जींवता सपनां नै ! 
</Poem>
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