|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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<Poem>
जिनगानी री
आंच में सेकै
भूखी मौत
आपरी रोटी,
धीमी पडै़‘र
फेर सांसां स्यूं सिलगा‘र
कर लै सजळी,
स्यात है हाल
रोटी री कोरां काची !
</Poem>