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मोटो डर!/ कन्हैया लाल सेठिया

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|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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<Poem>
 
रोही में फिर ल्याळी
 
आभै में गरणावे सिकरा
 
गेलां में रळकै वासक नाग
 
पण सैं स्यूं मोटो डर भुख,
 
जको कोनी बैठण दे
 
लरड़ी ने बाडै में
 
कबूतर नै आळे में
 
पग ने घर में !
 
</Poem>
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