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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem
उजड़यौड़े कुंभाणै री
गुवाड़ में ऊभो
आपरी बच्योड़ी उमर सूंप‘र
मुगत हुय जावै।
 </Poempoem>
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