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तेरा मारिया ऐसे रोऊँ / हरियाणवी
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19:33, 12 नवम्बर 2007
'''भावार्थ'''<br><br>
--'तेरे सौन्दर्य से घायल होकर मैं वन के मोर की तरह रोता हूँ । तेरे पैरों
की
पाजेब ऎसे बजती है, जैसे सन के बीज झंकार करते हैं । अरी ओ थोड़ा-सा जल पिला दे मुझे, दूर का पथिक हूँ मैं प्यास से व्याकुल ।'
अनिल जनविजय
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