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03:34, 18 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गौरीशंकर प्रजापत
|संग्रह=
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}<poem>जमानो बंध्योड़ो है-
जात अर धरम मांय
मिनख-मिनख बिचाळै
ऐ डीगी-डीगी भींतां ई भींतां।
आं चमकता कंगूरा नैं
ओळखतो कुण
किणनैं दिखावता
लोक देखापै री आ चमक
जे हेत मांय नीं रळती नींव...
हेत नैं नीं पूग सकै
आपां री सींव
निवण हेत नैं....
निवण रेत नैं....
</poem>