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शिकार / रूपसिंह राजपुरी
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03:57, 18 अक्टूबर 2013
घर-घर मैं आंगणियों भरग्यो।
इन्दिरा जेड़ी एक ना जामी,
देखो
कित्ताा
कित्ता
अरसा गुजरग्यो।
बै जामैं तो कीयां जामैं,
अल्ट्रासाऊण्ड बां रो शिकार करग्यो।
</poem>
Sharda suman
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