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सिवा एक समय के / अमृता भारती
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09:31, 19 अक्टूबर 2013
वह चल सकता है --
कुछ भी
नहींरुकता
नहीं रुकता
है
उसके अन्दर
सिवा एक समय के ।
</poem>
अनिल जनविजय
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