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छू आई बादल के गांव / मानोशी

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'<poem>छू आई बादल के गाँव | बहुत दिनों के बाद सखी री, उमड़ ...' के साथ नया पन्ना बनाया
<poem>छू आई बादल के गाँव |

बहुत दिनों के
बाद सखी री,
उमड़ घुमड़ कर
गरजी बरसी,
बीते मौसम में हो आई,
धो आई मैं स्मृति के ठाँव |

कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी,
बस इक क्षण की
बनी सहचरी ,
फिर पायल बन रुनझुन में ढल,
सज गई दो सखियन के पांव |

मछली कंटक
फँसी मचलती,
प्रीति डोर से
बंधी तड़पती,
साजन जो बिछड़े इस सावन,
हृदय प्राण सब लग गये दांव |

छू आई बादल के गाँव ।</poem>