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00:14, 22 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>
सपना में देखलीं सखिया स्याम के अवनवाँ
ए सहेलिया मोरी रे।
नाहीं अइलें स्याम हमार ए सहेलिया मोरी रे।
करि के करार स्याम गइलें मधुबनवाँ
ए सहेलिया मोरी रे।
हमनी के दिहलें बिसार ए सहेलिया मोरी रे।
कइसे के इन्हइया हमनी छोड़ी के परइलें
ए सहेलिया मोरी रे।
नाहीं माने जियरा हमार ए सहेलिया मोरी रे।
कहत महेन्दर सखिया धरूना धीरीजवा
ए सहेलिया मोरी रे।
काल्हु अइहें स्या मजी तोहार ए सहेलिया मोरी रे
</poem>
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