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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>
चम्पा की चमक चारू केतकी कमाल करे
चोटिन में गुलाब गूंथे अधर ललाई है।
मेंहदी सी अँगन श्रम लाल गाल विधु बाल
मानो गले में शुभ गजरा सुहाई है।
जूही की कर्धनी चमेली की पहुँची हाथ
सरस चतुराई बात बोलत मुसुकाई है।
फटिक सिला पर राम सानुज सीया के संग
प्रेम और सिंगार को महेन्द्र दरसाई है।
</poem>
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