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00:39, 22 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem> लटपटात गिरत जात धाय-धाय शिथिल गात,
जात-पाँत कुल की बात बाँसुरी भुलायो री।
बिन्दु श्रम झरत जात आंचर मुख उड़त जात,
कोई सखी मुसकुरात घेरि समुझायों री।
धीर-धरो आली आज मिलिहें बनमाली,
लाखों जोबन की डाली जोर बहुते दिखायो री।
द्विज महेन्द्र गोरी बात मान लो री मोरी,
चलो कृष्ण से मिलो री देखो सन्मुख में आयो री।
</poem>