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माँ की ममता / तारा सिंह

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माँ मुझको धरा पर छोडकर आज अकेला
तुम तो चली गई पिताश्री के पास , स्वर्ग को
माँ यह लोक-परीक्षा,मनुज के लिए बड़ा ही दारुण क्षण होता
इसमें दृष्टि-ज्योति हत , लक्ष्य-भ्रष्ट मन भाव-स्तब्ध निर्वाक
होकर भू पर छायाएँ - सा चलता , परागों से भरे फूलों का