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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>ए जी, लाली पलंग जवांदानी तकिया।
करवा फेरीं ना बलमुजी हमारी ओरिया।
ए जी, आमवाँ महुअवा के झूमे डढ़िया।
तनी ताकीं ना बलमुजी हमारी ओरिया।
आमवाँ मोजरि गइलें महुआ कोंचियाई गइलें
ए जी, रसवा से भरली सगरी डढ़िया। तानी।
कोइली के बोली सुनी मन बउराई गइलें।
ए जी, ना अइलें हमरो बलमु रसिया। तानी।
महुआ बीनन गइनीं ओही महुआ बगिया।
ए जी, रहिया जे छेंकेला देवर पपिया। तनी।
कइसे के फेरीं हो तोहारी ओरिया।
तोहरा हारवा के मीनावाँ गरेला छतिया।
कहत महेन्दर हो मिलन के रतिया।
बिहने जइबऽ कालकातवा फाटेला छतिया।
</poem>
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