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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>टीकवा नगीना हउएँ टेरा नगीना
कि पियवा नगीना कहाँ पइबों हो लाल।
पियवा बसेला मोरा पुरूबी बनीजिया।
कि उनहूँ के तेजी कहाँ रहबों हो लाल।
नीको नाहीं लागे मोरा घरवा-दुअरवा
कि नीको नाहीं लागेला गहनवाँ हो लाल।
घरे बोले चोरवा बाहर बोले मोरवा
कि बगिया में रोवेला पपीहरा हो लाल।
कहत महेन्दर सखिया भइली लरकोरिया
कि हमरो कन्हाइया कलकतवा हो लाल।

</poem>
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