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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>के मोरा मोरवा के रोड़वा से मरलन रे मायनवाँ।
मोरवा भइलन कमजोरवा रे मायनवाँ
निनिया के मातल हम सूतलीं अंगनवाँ रे मायनवाँ।
निनिया भइली दुसमनवाँ रे मायनवाँ।
वंसिया बजावत अइलन कान्हा मसतानावाँ रे मायानवाँ।
ठाढ़ भलन आ के सिरहानवाँ रे मायनवाँ।
बहे पुरवइया बथे सगरो बनवाँ रे मायनवाँ।
पीयवा बसेला कवना बदनवाँ रे मायनवाँ।
कहत महेन्दर कहिया ले जइबऽ गवनवाँ रे मायनवाँ।
छूटी जइहें बाबा के भवनवाँ रे मायनवाँ।
</poem>
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