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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>लहरिया हमरो उठेला एराम।
कहिया दू जागी भाग रोजे उचरेला काग
ऊधो बाबा ले अइलें खबरिया। जहरिया।
मदन करेला जोर जागते होखेला भोर
एही दुख में बीतेला उमिरिया। लहरिया।
द्वारिकापुरी में जाई, कान्हा भइलें जदुराई
रोज रोज देखीले डगरिया। लहरिया।
कहते महेन्दर गाई दरसन दे दऽ आई
आँख खोली देखीं भर नजरिया। लहरिया।
</poem>
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