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11:31, 23 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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|संग्रह=
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<poem>सुना है हम तो मिथिला में स्वयंवर होने वाली है।
जुटे सभ देस के राजा सभा भी होने वाली है।
चलो जी अवध के प्यारे हमारे नयन के तारे
तुम्हारी अवस दुनिया में विजय भी होने वाली है।
कुमारी जानकी प्यारी दुलारी है जनक जी की,
सभी के सामने प्यारे सभा में आने वाली है।
सँवारो कान के कुंडल मुकुट सिर धार लो प्यारे,
धनुष ले लो दोनों भइया समर भी होने वाली है।
महेन्दर दिल यही कहता न देखे जी को कल परता,
फड़कता है भुजा दहिना सुमंगल होने वाली है।
</poem>