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02:05, 24 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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|संग्रह=
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<poem>दिल ले के यार मेरा आखिर दगा न करना।
रखन दिलों के अंदर हरगिज जुदा न करना।
नाजों से दिल को पाले तुम को किया हवाले
जैसी तेर रजा हो हुज्जत कभी न करना।
दिल शीश ए हमारा नाजुक करम समझना।
पत्थर से ना लड़ाना कुछ बेवफा ना करना।
दिल दे दिया है तुमको चाहे बिगाड़ डालो
छोड़ो सभी बहाना एक दिन है यार मरना।
मिल जा महेन्द्र प्यारे अरमाँ मिटे हमारे,
रखना तू यादगारी बर्बादे-दिल न करना।
</poem>