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<poem> गंग किनार ठाढ़ रघुनन्दन केवट-केवट बुला रहे हैं।
चरण धोई चरनोदक लेंगे जनम-जनम के पाप कटेंगे

करेंगे पूरा जो कुछ कहेंगे हम अपनी लव को लगा रहे हैं।
मधुमेवा पकवान मिठाई इन्हें खिला के सुजस लहेंगे,

रहेगी सम्मुख विनय करेंगे ये हुस्नो-जल्वा देखा रहे हैं।
तीन मूर्ती एक संग खड़े हैं बन जाने की सूरत करें है

जती भेष को धरे हुवे हैं धरम के झंडा दिखा रहे हैं।
पिता हुकुम से बने तपस्वी जटा जूट सिर बना रहे हैं।

ना जाने किस वन में जा रहे हैं हम भी किस्मत जगा रहे हैं।
सदा महेन्दर दिलों के अंदर जपो निरंतर श्री रामचन्दर
ये हम से नइया मंगा रहे हैं हम सुरत की डोरी लगा रहे हैं।
</poem>
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