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<poem> हे दीन दयाल कृपालहरी नैया भवपार लगा देना।
मंझधार-निहार अधार नहीं बिगड़ी को मेरी तू बना देना।

मेरा नैया डगमग डोलि रहें तापे पुरवा के बयार बहें
तुम बिन को बेड़ा पार करे प्रभु चूक सभी बिसरा देना।

सभ को तजि आस निराशा हुये अब तेरा ही साँचा दास हुवे
अब तो जम के सभ त्रास गए जल्दी अपना तू बना लेना।

अब ध्यान तेरा दिन रात रहे लज्या प्रभु तेरा ही हाथ रहे,
अब द्विज महेन्द्र के आस यही निज रूप में आज मिला लेना।
</poem>
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