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<poem>मन राम भजो सब काम तजो क्या ठीक तेरे जिन्दगानी का।
कुछ धर्म करो कुछ कर्म करो अब छोड़ो चाल नादानी का।

दुनिया का झूठ झमेला है यह चार दिन का मेला है
अब जाना अंत अकेला है ये लीला अंतरयामी का।

जो कबूल किया सो भूल गया प्रभु से क्या मुँह दिखलाओगे,
अबहूँ से चेत सबेरा जी अब छोड़ो बात गुमानी की।

सोबत जागत वो याद करो औरवक्त नहीं बरबाद करो,
द्विज महेन्द्र हरिशरण गहो नाता रख सेवक स्वामी का।
</poem>
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