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02:30, 24 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
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<poem>यहाँ से राजन हटाओ झगड़ा सीया को दे दो श्रीराम जी को।
जनक दुलारी उमर की वारी है प्राण प्यारी श्रीराम जी को।
न था मुनासिब तुझे चुराना वो हर के लाना श्री जानकी को,
हँसी करायो पुलस्त्य जी को वन-वन फिराया श्रीराम जी को।
गया था तुम भी जनक सभा में वहद्द से क्यों ना हरे सीया को,
लगा के आयो सरम की बेरी प्रताप देखा श्रीराम जी का।
प्रलय की बिजली चमक रही है विपद की बादल गरज रही है,
मौत तुम्हारी बुला रही है कजां दे देरी लगा रही है।
बचोगे कब तक अधर्म करके अभी शरण लो श्रीराम जी को,
बचा लो लंका रहा निशका विनय सुनावो श्रीराम जी को।
सदा महेन्दर दिलों के अन्दर जपो निरन्तर श्रीराम जी को।
</poem>