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06:11, 26 अक्टूबर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>मुझे पता है
मैंने तुझसे मांग लिया था
मुहब्बत का इक मुश्किल अक्षर
और तुम परत गए थे चुपचाप
पर तुम फ़िक्र मत करना
देख मेरी इन खाली आँखों में
उम्मीद की अब कोई
आस भी नहीं ….
</poem>
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