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कविता से संवाद / हरकीरत हकीर

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<poem>आज अचानक
कविता मेरे पास आ खड़ी हुई
धीमे से मुस्कुराई और बोली
तुम मुझे भूल गई न नामुराद
शायद अब तुम्हें मेरी जरुरत नहीं …
मैं सहम गई
गहरी नजरों से कविता की ओर देखा
उसे सीने से लगा कहा …
तुम मुझे गलत समझ रही हो सखी
तेरे बिना मेरी कोई होंद नहीं
तुम तो मेरे जिस्म
मेरी रूह में बसी हो
अगर तुम नहीं होती
मैंने भी नहीं होना था
तुझसे ही तो मैंने यह जीवन पाया
और तुझसे ही खत्म करुँगी …

पर जा …
आज मैं तुझे आज़ाद करती हूँ
पता है क्यों …. ?
क्योंकि न जाने मेरे जैसी कितनी रूहें
बिलखती होंगी
तेरे सहारे के लिए …. !!
</poem>
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