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मेरा नाम / हरकीरत हकीर

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<poem>मेरा नाम ख़्याल
मेरा नाम मर्जी
मेरा नाम हीर
तुमने जितनी नाम रखने हैं रख लो
और यूँ ही ख्यालों को रंग देते रहो
मैं मर्जी की बन जाऊंगी
तुम्हारी मर्जी की भी
और अपनी मर्जी की भी …

जैसे रब्ब का ख्याल
बड़ा सुखद और सुहावना होता है
वैसे ही तेरा ख्याल भी रब्ब जैसा है
तूने मेरी खामोश चीखों में
अपनी मर्जी के रंग भरे
और वह अक्षर - अक्षर होकर
पन्नों पर खिल गए …


इक उदास सी ज़िन्दगी
अंधेरों का आलिंगन खोल
आसमान की ओर देखने लगी
आज मैंने पहली बार
तपते सूरज के चेहरे पर पसीना देखा
यह तेरे रंगों की करामात थी
वह पसीना- पसीना हुआ
दरख्तों के पीछे छुपता रहा
और मैं तेरे ज़िक्र की खुशबू
हवाओं में घोले बैठी
महक रही हूँ …

तुम्हारी मर्जी की भी बनकर
और अपनी मर्जी की भी बनकर …। !!

</poem>
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