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ख़ामोशी - 1 / हरकीरत हकीर

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<poem>चुप बैठी ख़ामोशी को
मैंने इक दिन धीमे से पूछा -
बता तू इतनी मौन क्यों रहती है ?
वह कुछ न बोली
बस सूनी आँखों से एकटक
मेरी ओर देखती रही …

मेरे हाथ अपने आप ही
उसके नमन को
जुड़ गए थे …
</poem>
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