Changes

काश! / मानोशी

130 bytes added, 04:53, 31 अक्टूबर 2013
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मानोशी|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>काश! रात ये लम्बी होती,
सुबह नही यूँ जल्दी होती।
तो किस्मत क्या अपनी होती...
काश रात ये लंबी होती,
सुबह नही यूं जल्दी होती।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,130
edits