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14:13, 22 नवम्बर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गंगासागर शर्मा
|संग्रह=
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<poem>म्हैं नीं जाणूं
कबड्डी, लुकमींचणी, मारदड़ी
म्हैं तो जाणूं फगत-
‘पढाई, कंपीटीशन, डॉक्टर, कम्प्यूटर’
जैङा ऊंचा सबद!
क्यूं कै म्हनैं साम्हलै घर वाळै
टाबर सूं ज्यादा नंबर लावणा है।
ऐ तो बाद में ई होवता रैसी!
खेलणो-कूदणो, झौड़-झपाटो तो
टी.वी. में चालै आठूं पौर
पण डर जावूं कदी-कदी
आ होड
कठै ले जाय’र छोडैला म्हनैं!</poem>