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दिसावरी पछै / गंगासागर शर्मा

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<poem>दिनूगै रो बगत
दो हाथ लीपै हा
गारै सूं आंगणो।
टाबरिया बैठ्या टाली हेठै
ठंडी पून में खेल जचावै हा
छोटकड़ी लाडेसर भाजती फिरै ही-
तितलियां लारै
अर राजूड़ो बणावै हो गीली माटी सूं
घरकोल्या।
खेत री बाजरी रा सिट्टा
मारै हा मसकोड़ा।
टाबर झूमग्या बारकर
बापू रै घरै आवणै रै कोड में
मिनटां में आंगणो लीप’र
पसवाड़ै होयग्या वै हाथ
हरख पळकै हो
वां हाथां री चूडिय़ां री झणकार में।
ओ हरख-उमाव हाथ आयो
चार सौ कौस आंतरै
दो बरसां री दिसावरी सूं।</poem>
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