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पींपळ / कन्हैया लाल सेठिया

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पर करै जद कद ओळयूं
पीरै रै पींपळ री
खेलता जका टींगर
इण रै गट्टै मांड’र चिरभर
बै हुग्या अबै जोध जवान मोटयार
पण पींपळ सारू बारै मन में
हबोळा खावै बो ही हेत
बवै परस’र इण नै जको बायरो
कर दै अणसारां नै निरोग
इण री सुखी लकड़यां पाळै
चत्रण री गरज
मर ज्यावै जद कोई
पुनवान मिनख
दिरीजै इणरी लकड़यां स्यूं दाग
ओ परतख धरम
कयो गीता में किसन
रूखां में मैं पीपळ !
</poem>
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