Changes

अरे सोनवा के बनल सिंहासन, रुपवे मढ़ावल
अरी हो, तेही पर चढ़ी गउरा, मने-मन झउखेले।।५।।
 
(लछमिनी देवी द्वारा गाया हुआ रूप)
 
केथी कर बनत हो सिंहासन, केथिए हो भरावन हे
अरी हो, ताही चढ़ि अइले हो महादेव, मने-मने झउखेला हे।।
सोने के बनत हो सिंहासन, रूपवे भरावन हे
अरी, ताही हो चढ़ि अइले महादेव, मने-मने झउखेला हे।
अदहन दिहली हाँ चढ़ाई, गउरा पइंचा माँगिले हे,
अरी हो, माँगी-बानी अनले महादेव, सूपा भरी धान हे।
माँगी-चानी अनले महादेव सूपा भरी धान हे,
अरी हो, दुअरे हे देहली पसारी, बसहाँ बैला खा गइले हे।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,119
edits