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14:23, 23 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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<poem>
अपनी ख़ुशियां सभी निसार करूँ
ज़िन्दगी आ कि तुझसे प्यार करूँ
आदतन तुझ पे ऐतबार करूँ
बे सबब तेरा इन्तज़ार करूँ
तेरी ख़ुशबू से तन-बदन सींचू
अपनी सांसों को ख़ुशगवार करूँ
मुश्किलों को तेरे मैं सहल करूँ
तेरी दुश्वारियों पे वार करूँ
आइना खौफ़ के नगर में है
कैसे मैं सोलह सिंगार करूँ
बे सबब तो नहीं उदास'कंवल'
बे वजह क्यों मैं शर्मसार करूँ
</poem>
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