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11:07, 24 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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बलखाती मछलियां हैं, सफ़र चांदनी का है
मस्ती है चांद रात है, क़िस्सा नदी का है
दिल में ख़लिश है,लब पे हंसी, सावन आंख में
जो भी नसीब मुझ को हुआ सब उसी का है
तुम कह रहे हो किसकी कहानी बताओ भी
किस्सा ये हू-ब-हू मेरी दीवानगी का है
वो बेरुख़ी की धूप है, मैं बेबसी का गांव
मुंसिफ़ का उसको, मुझ को मज़ाक चहरी का है
तुम हो बज़िद जो साथ निभाने पे कर लो ग़ौर
दिल का मुआमला है नहीं दिल्लगी का है
फूलों की पंखडि़यां भी हैं, तितली के पर भी हैं
यादों का है सफ़र तो वरक़ डायरी का है
परवरदिगार जानता है उससे छूटकर
अब कुछ अजीब हाल मेरी ज़िन्दगी का है
अंदाजे़-आशनार्इ से वाकिफ़ नहीं हूं मैं
उसका भी लबो-लहजा 'कँवल' अजनबी का है
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