1,248 bytes added,
11:35, 24 दिसम्बर 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जल गये याद के बामो-दर धूप में
पर सलामत है दिल का खंडर धूप में
हो न जाये कहीं बेअसर धूप में
यूं परेशां है रंगे-सहर धूप में
बेख़बर था समुंदर मगर मछलियां
ऐश करती रहीं रेत पर धूप में
फूस की खोलियों में है दहशत बपा
ढूढंता है अमां1 इकशरर2 धूप में
सुबह से एक साया भटकता रहा
इक दरीचा रहा मुंतज़र3 धूप में
मेरे अहसास4 की तितलियां खो गर्इ
रफ़्तारफ़्ता 'कँवल' मोतबर5 धूप में।
1.सुरक्षा-शांति-शरण, 2.चिंगारी, 3.प्रतीक्षारत, 4.चेतना, 5.विश्वस्त।
</poem>