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कोई तो बादल सा बरसे / गुलाब सिंह
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कोई तो बादल
-
सा बरसे
धरती को शीतल कर जाए।
शब्दों-से दो कोमल पत्ते-
निकलें, सृष्टि कथा कह
पाये।
पाए।
जंगल है या
वत्सल बाँहें
मुक्त हँसी
आत्मीय अपरिचय किसे याद
है
हैं
भूत-भविष्यत से हट कोई
वर्तमान पल तक तो आए!
</poem>
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