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मैं ने बीनाइयाँ बो कर भी अंधेरे काटे
किके किसके बस में थी ज़मीं , अब्र-ओ-हवा किस की थी
छोड़ दी किस लिये तू ने 'मुज़फ़्फ़र' दुनिया
जुस्तजू सी तुझे हर वक़्त बता किसकी थी
</poem>
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