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मत समझना तुम कभी यह, / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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20:26, 16 जनवरी 2014
सूक्ष्म अणु-अणुमें सदा ही, सर्वथा आनन्द-अनुभव॥
पाचभौतिक देह नश्वरका मिलन-अमिलन सदृश है।
?योंकि
क्योंकि
दुष्परिणाम उसका एकमात्र वियोग-विष है॥
आत्म-मिलन अबाध अविनाशी मधुरतम परम रस है।
सदा लहराता अमृत-सागर वहाँ शुचि एकरस है॥
</poem>
Sharda suman
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