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12:32, 8 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>आँधियाँ ठिठुरती हुई
काँपती हुई
थ र थ रा ती हुई
एक बुज़ुर्ग आवाज़ की कडक
महँदी आसमानों में रची
बादलों में काजल लगा
चाँद माथे पर सजा, पूरा का पूरा
गोल
पीला - पीला चौदहवीं का
नफ़रत के परदे में
चली तलवारें
चमक - चमक उट्ठा
सफ्फ़ाक !
प्रेम...
पुनवा फागुनी
ख़ूब रँगी और ख़ूब रँगी
एक लहूलुहान रात
- 1999 ई0 </poem>