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15:19, 8 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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|संग्रह=
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<poem>
जब तेरी बंदगी नहीं होती
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
मौत की जुस्तजू1 है क्यों तुझको
मौत में दिलकशी2 नहीं होती
बात क्या है कि आजकल मुझको
तुझ से मिलकर खुशी नहीं होती
हाय बेचारगी-ओ-मजबूरी
जो करूं बंदगी नहीं होती
कितना दुश्वार है ये फ़न यारो
शायरी दिल्लगी नहीं होती
अब 'कंवल’ को न छेडि़येगा कभी
उसके लब पर हंसी नहीं होती
1. अन्वेषण 2. आर्कषण।
</poem>
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