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15:33, 8 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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दिल की दुनिया हो गर्इ जे़रो-ज़बर1
जब भी याद आया तेरा तर्ज़े सफ़र2
वो सलामे-शौक़3 वो अफ़्सुर्दगी4
वक़्त-ए-रूख़सत5 वो तेरी नीची नज़र
ख़ारे-तिश्नालब6 की आंखों में चमक
आबला-पा मुझको बढ़ता देखकर
इश्क़ ही के दम से दोनों की बहार
दश्ते-वहशत7 हो कि हो मजनूं का घर
इश्क़ की तक़दीर में कुछ भी नहीं
शमअ़ को जलना है लेकिन ता-सहर8
</poem>
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