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|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}{{KKAnthologyChand}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगीतुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी <br>उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे तुम आये तो इस रात की औक़ात आख़िर कोई तक़रीब-ए-मुलाक़ात बनेगी <br><br>
उन से यही कह आये कि ये हम अब से मिलेंगे <br>होगा कि किसी एक को चाहेंआख़िर कोई तक़रीब-ए-मुलाक़ात ऐ इश्क़! हमारी न तेरे साथ बनेगी <br><br>
ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें <br>हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनियाऐ इश्क़! हमारी न तेरे साथ कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी <br><br>
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया <br>कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी <br><br> ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे <br>जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी <br><br/poem>
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