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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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धारवे किसान की नई बहू की आँखें</div>
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रचनाकार: [[अरुण कमलसूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
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कौन बचा है जिसके आगेइन हाथों को नहीं पसारा यह अनाज जानती जो बदल रक्त मेंअपने को खिली हुई --टहल रहा है तन के कोनेविश्व-विभव से मिली हुई --कोनेयह कमीज़ जो ढाल बनी हैनहीं जानती सम्राज्ञी अपने को --नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,वे किसान की नई बहू की आँखेंबारिश सरदी लू ज्यों हरीतिमा मेंबैठे दो विहग बन्द कर पाँखें ;सब उधार कावे केवल निर्जन के दिशाकाश की, माँगा चाहानमकप्रियतम के प्राणों के पास-तेलहास की, हींग-हल्दी तकसब कर्जे काभीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से --यह शरीर बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी उनका बंधक अपना क्या है इस जीवन मेंसब तो लिया उधारसारा लोहा उन लोगों काअपनी केवल धार वर से
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