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माइकेनै / ग्योर्गोस सेफ़ेरिस
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21:14, 22 फ़रवरी 2014
यहाँ तक कि ख़ामोशी भी अब तुम्हारी नहीं है
यहाँ जहाँ चक्की के पाट निःशब्द रुक गए हैं ।
'''रचनाकाल : अक्तूबर 1935'''
</poem>
अनिल जनविजय
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